17 Best Dadimaa ki Kahaniyan 2022 in Hindi | दादी माँ की कहानियाँ

इस लेख में हमारे पास 17 Best Dadimaa ki Kahaniyan in Hindi का समग्र है, यह कहानियाँ हमने आपके लिए विशेष रूप से चुना है। यहां ददिमा की हर कहानियाँ से आपको कुछ ना कुछ सीखने को मिलेगी। जो इस दुनिया को समझने में आपकी मदद करेगी।

हर बच्चा Dadi maa ki kahani हिंदी में पढ़ना और सुनना पसंद करते हैं। जब हम बच्चे थे, दादी मां से कहानियाँ सुनने के लिए उनका इंतजार करते थे। फिर, दादीमां हमें रोज अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनाते थे। और हम, कहानियाँ सुनते सुनते सो जाते थे।

ऐसे ही कुछ अच्छी Dadimaa ki kahaniya in hindi हमने आपके लिए चुना है। हम आशा करते हैं, सारी कहानियाँ आपको पसंद आएगा।

 

17 Best Dadimaa ki Kahaniyan in Hindi

 

1. मन का निर्णय Dadimaa ki Kahaniyan

मन का निर्णय - Dadimaa ki Kahaniya
मन का निर्णय – Dadimaa ki Kahaniya

बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। गरीब होने के बावजूद, ब्राह्मण सच्चा और ईमानदार था। वह भगवान पर विश्वास करता था।

वह रोज सुबह उठकर, गंगा में स्नान करता था। स्नान करता था और फिर पूजा पाठ करता था। हमेशा की तरह, वह एक दिन गंगा में स्नान करने गया।

जब वापस आ रहा था तो उसने देखा, रास्ते में एक लिफाफा पड़ा है। ब्राह्मण लिफाफा खुलते ही चौंक गया, उसमें काफी पैसे थे। रास्ते में पैसे गिनना ठीक नहीं होगा, यह सोच कर वह घर की ओर चल दिया।

घर जाकर पूजा करने के बाद, उसने लिफाफा खोला। पैसे गिरने के बाद पता चला कि, लिफाफा में पूरे ₹10000 थे। ब्राम्हण ने सोचा भगवान उसकी बात सुन ली है।

लेकिन, ब्राह्मण की खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकी। अगले ही पल उसके दिमाग में आया, कि यह पैसे मेरे जैसा किसी गरीब आदमी की हो सकता है। शायद किसी ने बेटी की शादी के लिए जोड़ कर रखे थे।

फिर, उसके मन में एक विचार आया। “वह गांव के मुखिया को पैसा दे आएगा।” वह उठा और मुखिया के घर की तरफ चल दिया। जब वह वहां पहुंचे तो उसने देखा,

“एक गरीब आदमी, पहले से ही मुखिया के घर आया हुआ है।” वह भी उनके पास पहुंच गया। गरीब आदमी रो-रोकर मुखिया को बता रहा था, कैसे-कैसे उसने पैसे जोड़े थे।

सारी कहानी सुनने के बाद, गरीब ब्राम्हण ने उस आदमी को लिफाफा देते हुए कहा, “मुझे यह पैसे रास्ते में मिला है। आपकी कहानी सुनने के बाद मुझे यकीन हो गया, कि यह पैसा आपकी है।

पैसे देखते ही, गरीब आदमी के चेहरे पर हंसी आई। गरीब आदमी ने ब्राम्हण को धन्यवाद दिया। फिर, ब्राम्हण अपने घर वापस आया। उसको इस बात की खुशी थी, कि उसकी विचार सही था।


2. एक पैर वाला बगुला Dadimaa ki Kahani

एक बार, एक अंग्रेज भारत में घूमने के लिए आया। उसने भारत के कई राज्यों को निरीक्षण किया। उसको भारत पसंद आया और उसने कुछ दिन यहां ठहरने का मन बनाया।

अंग्रेज, यहां रहने के लिए शहर में एक घर किराए पर लिया। घर के काम करने के लिए एक नौकर भी रख लिया।

नौकर घर की सफाई करना, रोटी बनाना और कपड़े धोना सारा काम करता था। एक दिन अंग्रेज कहीं से एक बगुला मारकर घर में ले आया।

और नौकर को कहा, इसको अच्छी तरह से तड़का लगाकर बनाना। नौकर ने पूरे दिल से बगुला को बनाया।

लेकिन बगुला को तलते समय, नौकर उसकी एक पैर खा लिया। उसने बगुला को प्लेट में सजाकर अंग्रेज के सामने रख दिया।

अंग्रेज ने देखा, कि बगुला की एक पैर गायब है। उसने नौकर को बुलाकर पूछा, “इस बगुला की एक पैर है, दूसरा कहां गया?”

नौकर ने जवाब दिया कि, बगुला की एक ही पैर होती है। अंग्रेज ने कहा, “नहीं बगुला की दो पैर होती है, मैं तुम्हें कल सुबह दिखा दूंगा।” नौकर ने कहा ठीक है।

अगले दिन सुबह दोनों बगुला देखने चले गए। उन्होंने झील के किनारे एक बगुला को बैठा हुआ देखा। वहां बैठे बगुला ने अपना एक पैर ऊपर उठा रखा था।

तभी नौकर ने कहा, “वह देखो, बगुला की एक ही पैर है। फिर, अंग्रेज ने अपने दोनों हाथों से ताली बजाई। बगुला ने अपना पैर नीचे किया और खड़ा हो गया।

अंग्रेज ने कहा, “वह देखो, उसके दो पैर है।”

नौकर ने उत्तर दिया, “आप रात को बगुले के सामने अपने हाथों से ताली बजाना ही भूल गए। अगर आपने कल रात को ताली बजाया होता। तो वह बगुला भी अपनी दूसरी पैर नीचे कर देता।”

अंग्रेज को इस बात का कोई उत्तर नहीं पता था। इसीलिए वह नौकर की बात मान गई और दोनों एक साथ घर वापस लौट आई।


3. चतुर लोमड़ी Dadi ki Kahaniyan in hindi

एक बार, एक जंगल में एक चतुर लोमड़ी रहता था। बाघ, चूहा, भेड़िया और नेवला उनके अच्छे दोस्त थे। उन्होंने एक साथ मिलकर जंगल में रहते थे।

एक दिन, पांचों दोस्त मिलकर शिकार करने के लिए जंगल में जा रहे थे। जंगल में उन्होंने एक हिरन देखा। उन्होंने हिरण को पकड़ने की कोशिश की लेकिन असफल रहे।

पांचों दोस्त आपस में मिलकर एक विचार किया। लोमड़ी ने कहा, “यह हिरन दौड़ने में काफी तेज है और काफी चतुर भी है। अगर हम बुद्धि से काम ना लिया तो उसे पकड़ना मुश्किल होगा।

अब ऐसा किया जाए, जब वह हिरन सो रहा होगा तो चूहा भाई चुपके से जाकर उसकी पैर काट देना। जिससे उनके पैर जख्म हो जाएगी और वह उतना तेजी से नहीं दौड़ पाएगा।”

सब ने मिलजुल कर वैसे ही किया। पैर में जख्म के कारण हिरन तेज नहीं भाग पाया। बाघ जाकर आसानी से उसे पकड़ लिया और मार दिया।

खाने के समय लोमड़ी ने कहा, “अब तुम सब नहा कर आओ तब तक मैं इसकी देखभाल करता हूं।” सब वहां से चले जाने के बाद, लोमड़ी ने एक योजना के बारे में सोचने लगा।

फिर बाघ स्नान कर के लौट आया। लोमड़ी को चिंतित देखकर बाद में कहा, “मेरे प्यारे दोस्त, तुम इतना क्यों चिंतित हो? आओ हम मिलकर हिरन को खाए और मौज मनाएं।”

लोमड़ी ने कहा, “बाघ भाई, चूहे ने मुझसे कहां कि बाघ अभी बूढ़ा हो गया है, हिरन को तो मैंने मारा है। आज वह बूढ़ा बाघ मेरी कमाई खाएगा। उसकी यह घमंड भरी बातें सुनकर, मैंने अब हिरन को खाना अच्छा नहीं समझता।

बाघ ने कहा, “अच्छा ऐसी बात है? चूहा ने तो मेरी आंखें खोल दिया। इस हिरन को मैं नहीं खाऊंगा, अब मैं अपनी बल पर शिकार करके खाऊंगा।” यह कहकर बाघ वहां से चला गया और उसी समय चूहा आ गया।

लोमड़ी ने कहा, “चूहा भाई, नेवला ने मुझसे कह रहा था कि, बाघ के काटने के कारण हिरण की शरीर जहर से भर गया है। मैं तो इसे नहीं खाऊंगा, यदि तुम कहो तो मैं चूहा को खा जाऊंगा।”

चूहा डर कर अपने बिल में घुस गया। अब भेड़िया की बारी आई। लोमड़ी ने कहा, “भेड़िया भाई, आज बाघ तुम पर बहुत नाराज है। वह अभी आने वाला है, इसीलिए तुम जो ठीक समझो करो।”

यह सुनकर भेड़िया भी वहां से भाग गया। अब नेवला वहां आया। लोमड़ी ने कहा, “देख ले नेवले! मैंने लड़कर बाघ, चूहे और भेड़िया को यहां से भगा दिया है। यदि तुझ में इतना दम है, तो मुझसे लड़ ले और फिर हिरण का मांस खा।”

नेवला ने कहा, “जब सभी तुम से हार गया है, तो मैं तुम से लड़ने की हिम्मत कैसे करूं?” यह कहकर नेवला भी वहां से भाग गया।

अब लोमड़ी सब को वहां से भगाकर अकेला मांस खाने लगा। इस तरह लोमड़ी अपनी चतुराई से बाघ और भेड़िया जैसे ताकतवर को भी उल्लू बना दिया।


4. एक से भले दो Dadi ki kahaniya

एक बार गांव में एक ब्राह्मण रहता था। एक दिन किसी काम के दौरान उसे दूसरे गांव में जाना था। उसकी मां ने उसे किसी को साथ लेकर जाने के लिए कहा।

क्योंकि उस गांव में जाने के लिए, रास्ते में एक जंगल पार करना पड़ता था। लेकिन उनके साथ जाने के लिए कोई राजी नहीं है।

इसलिए ब्राम्हण ने अपने मां को कहा, “मां तुम डरो मत, मैं अकेला ही चला जाऊंगा।” मां उसकी बात सुनकर जल्दी पास की नदी में गए और वहां से एक केकड़ा पकड़ कर लाए।

माँ ने केकड़ा को बेटे को देते हुए कहा, “तुम्हारा वहां जाना आवश्यकता है। लेकिन तुम्हारे साथ जाने के लिए कोई नहीं है। इसीलिए, तुम अकेला जाने से बेहतर केकड़ा को साथ में लेकर जाओ। एक से भले दो, रास्ते में यह तुम्हारा सहायक होगा।”

पहले तो ब्राम्हण को केकड़ा साथ में ले जाना अच्छा नहीं लगा। वह सोचने लगा, कि एक केकड़ा मेरी क्या सहायता कर सकता है।

फिर, मां की बात आज्ञा रूप मानकर उसने पास की परी एक कपूर की डिब्बे में केकड़ा को रख लिया। उसने डिब्बे को अपनी झोली में डाल दिया और अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ा।

कुछ दूर जाने के बाद, धूप काफी तेज हो गई। कड़ी धूप से परेशान होकर, वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा। पेड़ की छाया में जल्दी उसे नींद आ गई।

उस पेड़ के बिल में एक सांप रहता था। सांप ब्राम्हण को सोता हुआ देख कर उसे काटने के लिए, बिल में से बाहर निकला।

जब सांप ब्राम्हण के करीब आया, तो उसे कपूर की सुगंध आने लगी। वह ब्राह्मण के वजह, झोले में रख के डिब्बे के पास गया।

फिर सांप जब डिब्बे को खाने के लिए झपटा मारा, तो डिब्बे टूट गई और डिब्बे में से केकड़ा बाहर आ गया।

और डिब्बे सांप के मुंह में अटक गई। केकड़ा ने मौका पाकर सांप की गर्दन को कस के पकड़ लिया और अपने तेज नाखून की मदद से उसे मार दिया।

उधर नींद खुलने पर ब्राह्मण ने देखा, कि पास में ही एक सांप मरा पड़ा है। सांप की दातों में डिब्बे देखकर, ब्राह्मण समझ गया कि इसे केकड़ा ने ही मारा है।

वह सोचने लगा, कि मां की आज्ञा मान लेने के कारण आज मेरी जान बची है। नहीं तो यह साफ मुझे मार देता। इसलिए हमें माता, पिता और गुरुजनों का आज्ञा हमेशा पालन करना चाहिए।


5. दो हंस और कछुआ Dadimaa ki kahani

एक बार, एक तालाब में एक कछुआ रहता था। धीरे धीरे चलने के कारण उससे कोई दोस्ती नहीं करता था। वह तलाब में हमेशा अकेला रहता था।

एक दिन, उस तालाब में तो हंस तैरने के लिए आया। हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार थे। हंस कछुआ को अकेला देखकर उससे दोस्ती करने का सोचा।

कछुआ की धीमे धीमे चलना और भोलापन हंस को बहुत अच्छी लगी। धीरे-धीरे वो तीनो अच्छे दोस्त बन गए। फिर, तीनों साथ मिलकर खुशी से तलाब में रहती थी।

दोनों हंस घूमने के लिए रोज यहां वहां जाती थी। और वहां से वापस तलाब में आकर, कछुआ को दूसरी जगह की अनोखी कहानियां सुनाती थी.

और कछुआ बिल्कुल शांत होकर उनकी बातें सुनती थी। सब ठीक-ठाक था। दिन गुजरते गए, उन तीनों की घनिष्ठता धीरे धीरे बढ़ती गई।

एक बार भयानक सूखा पड़ा। बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी नहीं बरसा। उस तालाब का पानी धीरे-धीरे सूखने लगा। प्राणी मरने लगे।

सारी मछलिया तड़प तड़प कर मर गई। तलाब में एक बूंद भी पानी नहीं था, पूरा सूखा पड़ा था। कछुआ अपनी मौत का इंतजार कर रहा था। वह बड़ा संकट में पड़ गया था।

कछुआ उस तालाब में रहेगा, तो उसकी मरना निश्चित है। हंस अपने मित्रों को हिम्मत ना हारने की सलाह दी। और मित्रों की संकट दूर करने का उपाय सोचने लगे।

हंस केवल झूठा दिलासा नहीं दे रहे थे। वे दूर-दूर तक उड़ गया संकट की हाल ढूंढने के लिए। तीन दिनों के बाद हंस उस तालाब में लौट कर आया।

और कछुआ को कहां, “दोस्त, यहां से 100 कोस दूर पर एक झील है। उसमें काफी पानी है, हम तीनों वहां मजे से रह सकते हैं।”

कछुआ रोनी आवाज में कहां, “100 कोस? इतनी दूर चलने में मुझे महीनों लगेगी, तब तक मैं मर जाऊंगा।” कछुए की बात भी ठीक थी।

दोनों हंस थोड़ी देर सोचने लगा, फिर उनके दिमाग में एक एक योजना आया। बे एक लकड़ी उठा कर लाए और कहां,

“दोस्त, हम दोनों अपनी चोंच की मदद से लकड़ी की दोनों तरफ पकड़कर आसमान में उड़ेंगे। तुम हम दोनों के बीच, अपनी मुंह से लकड़ी को पकड़े रहना।

इस तरह हम तीनों बहुत जल्दी उस झील में पहुंच जाएंगे। और तुम्हें कुछ नहीं होगा, पहले की तरह हम एक साथ खुशी से उस झील में रहेंगे।

उन्होंने चेतावनी दी, “पर याद रखना, उठते समय अपना मुंह ना खोलना। वरना नीचे गिर कर मर जाओगे।” कछुआ ने धीरे से अपना सर हिलाया।

दोनों हंस लकड़ी के दोनों तरफ पकड़कर उड़ने लगे। कछुआ उनकी बीच लकड़ी पकड़ा हुआ था। वे तीनो एक गांव की ऊपर से जा रहे थे।

नीचे खड़े लोग आसमान में एक अद्भुत नजारा देखा। सब लोग एक दूसरे को ऊपर आसमान का दृश्य दिखाने लगे। बड़े, बूढ़े, जवान सब ऊपर देखने लगे।

खूब शोर मचा, कछुए की नजर नीचे खड़े लोगों पर पड़ी। उसे आश्चर्य हुआ कि, उन्हें इतने सारे लोग देख रहे हैं। वह अपने दोस्तों की चेतावनी भूल गया।

और चिल्लाया, “देखो दोस्त, कितने सारे लोग हमें देख रहे हैं।” मुंह खुलते ही वह नीचे गिर पड़ा। और बहुत ऊंचाई से नीचे गिरने के कारण कछुआ मर गया।


6. दिमाग के बिना गधा Dadi ki Kahani in hindi

एक बार, एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे। इस जंगल में एक शेर भी रहता था। शेर ने एक लोमड़ी को अपने सहायक रखा था।

शेर जंगल में जानवरों का शिकार करता था। उसमें से थोड़ा हिस्सा लोमड़ी को देता था। लोमड़ी मांस का टुकड़ा खाकर, शेर के साथ उनका सहायक बनकर रहता था।

जंगल में एक दिन शेर का मुकाबला एक हाथी से हुआ। हाथी ने बहुत बुरी तरह से शेर को जख्म किया। बहुत सारे चोट आने के कारण, शेर शिकार करने का काबिल नहीं रहा।

कुछ दिनों तक शेर को खाने के लिए कुछ नहीं मिला। शेर के साथ उनका सहायक लोमड़ी भी कुछ दिनों से भूखा रहे। शेर ने सोचा, ऐसा चलता रहा तो हम एक दिन मर जाएंगे।

एक दिन शेर ने लोमड़ी को कहा, “तुम बहुत चतुर हो, जंगल में जाओ और किसी भी तरह से एक जानवर को यहां तक लेकर आओ। मैं उसे मारकर हमारा भोजन का इंतजाम करूंगा।”

लोमड़ी ने कहा, “ठीक है।” फिर उसने एक मूर्ख जानवर को जंगल में ढूंढने लगा। बहुत दूर जाने के बाद, उसने एक घास खाता हुआ गाधा को देखा।

लोमडी गाधा के पास गई और उसे लालच देते हुए बोली, “तुम यहां क्यों घास खा रहे हो? यहां तो कोई हरियाली घास नहीं है।”

गाधा को पहली बार किसी ने इतनी मीठी शब्दों में बोला था। गाधा ने जवाब दिया, “लोमड़ी भाई मैं तुम्हें क्या बताऊं, मेरे मालिक सारा दिन मुझसे काम कराती है और खाने के लिए बस इतना ही देता है।”

फिर लोमड़ी ने कहा, “तुम यहां क्यों रह रहे ? मेरे साथ जंगल में चलो। वहां तुम्हें बहुत सारा हरी घास मिलेगी खाने के लिए। फिर तुम एक शक्तिशाली गाधा बन जाओगे।”

इस पर गधे ने कहा, “वहां जंगल में तो बहुत सारे जंगली जानवर होगा, उन्होंने मुझे मार देगा।”

यह सुनते ही लोमड़ी सावधान हो गया और कहां, “तुम्हें किसी भी जंगली जानवर से डरने की जरूरत नहीं। और तुम जानते हो, मुझे यहां जंगल के राजा शेर ने भेजा है। उन्होंने तो तुम्हें मंत्री बनाने का फैसला किया है।”

इस बात को सुनकर गाधा बहुत खुश हो गया और लोमड़ी के साथ जंगल की ओर चलने लगा। लोमड़ी और गधा, साथ में शेर के नजदीक गया।

नजदीक आने पर शेर ने गधा पर हमला किया। एक पंजा मार कर गधा को मार दिया। इसके बाद शेर ने लोमड़ी को कहा, “तुम यहां बैठकर इस की रखवाली करो, तब तक मैं नहा कर आता हूं।”

लोमड़ी बहुत भूखी थी, इसलिए उसने शेर का इंतजार नहीं किया। लोमड़ी चुपके से गधे का दिमाग निकल कर खा गई। कुछ देर बाद शेर नहा कर आया, तो उसने देखा कि गधे का दिमाग गायब है।

गुस्से से लोमड़ी को कहां, “लोमड़ी मुझे गधे का दिमाग नहीं दिखाई दे रहा है, यह कहां गया?”

लोमड़ी अपनी चतुराई से उत्तर दिया, “महाराज, अगर इस गधे के पास दिमाग होता, तो वह मरने के लिए हमारे पास थोड़ी आता। इस गधे के पास तो दिमाग ही नहीं है।”


7. पापों का फल Dadimaa ki kahaniya

एक बार, एक ऋषि अपने घर के बाहर तपस्या में लीन थे। कुछ चोर उनके घर के सामने से गुजरे। बे राज महल से लूटकर भागे थे। लूट का धन भी उनके साथ था।

राजा के सिपाही, चोर को पकड़ने के लिए उनका पीछा कर रहे थे। चोरों ने लूट का धन ऋषि की कुटिया में छुपा दिया और वहां से भाग गया।

सिपाही चोरों को ढूंढते ढूंढते जब वहां पहुंचे, तो चोर की तलाश में कुटिया की भीतर गएv चोर तो नहीं मिले, पर वहां रखे धन सिपाही को मिल गया।

सिपाहियों ने सोचा, “बाहर जो व्यक्ति बैठा है, निश्चित वही चोर है। अपने आप को बचाने के लिए एक साधु बनकर बैठा है। झूठे तपस्या कर रहा है।”

फिर सिपाहियों ने ऋषि को पकड़ लिया और राजा के सामने ले जाकर प्रस्तुत किया। राजा भी कई विचार नहीं किया और पकड़े गए चोर को सूली पर लटकाने का आदेश दे दिया।

अपने मन ही मन ऋषि सोचने लगे, कि ऐसा क्यों हुआ? और यह उन्हें किस बात की सजा मिल रही है? उसने अपने जीवन को देखा, लेकिन कहीं कुछ नहीं पाया।

फिर, ऋषि अपने पिछले जन्म को देखा। ऋषि ने देखा, एक 10 साल का बालक है, उसने एक हाथ में एक कीड़े को पकड़ रखा है। दूसरे हाथ में एक कांटा है।

जब बच्चा कीड़े को कांटा से काटता है और मारता है, तो कीड़े दर्द से कराहने लगा और बालक खुश हो रहा है। कीड़े को दर्द हो रहा है और बालक उसे देख कर खुश हो रहा है।

ऋषि समझ गए, कि उन्हें किस पाप का दंड मिल रहा है। पर वह तो एक ऋषि है। क्या उनकी इतनी सालों की तपस्या भी इस पापों को नष्ट नहीं कर पाई।

ऋषि अपने मन ही मन सोच रहे थे। फिर कुछ लोग जो ऋषि को जानते थे, वे राजा के पास पहुंचे। और ऋषि का परिचय देते हुए कहा, “वह निर्दोष है।”

राजा ने ऋषि से क्षमा मांगी और उसे मुक्त कर दिया। प्रभु का निर्णय कितना न्यायसंगत है, ऋषि ने महसूस किया। ऋषि मन ही मन उस कीड़े से क्षमा चाहते हुए, अपने तपस्या में लीन हो गए।


8. बाघ और बगुला Dadimaa ki kahaniya Hindi mai

बाघ और बगुला - Dadimaa ki kahaniya Hindi mai
बाघ और बगुला – Dadimaa ki kahaniya Hindi mai

एक बार, एक बाघ के गले में एक हड्डी अटक गई। बाघ उसे निकालने की बड़ी कोशिश की। लेकिन, उसने हड्डी को गले में से निकल नहीं पाई।

दर्द के मारे, बाघ परेशान होकर इधर उधर भागने लगा। किसी भी जानवर को सामने देखते ही बह कहने लगता है,

“भाई! यदि तुम मेरे गले में से हड्डी को निकाल देते हो। तो मैं तुम्हें एक विशेष पुरस्कार दूंगी और मैं जीवन भर आपका ऋणी रहूंगी।”

परंतु कोई भी जानवर डर के कारण, बाघ के गले में से हड्डी निकालने के लिए राजी नहीं हुआ। बाद में, पुरस्कार मिलने की आशा में आखिरकर एक बगुला राजी हो गया।

उसने अपनी लंबी चोंच के मदद से, बाघ के मुंह में से हड्डी को निकाल दिया। बाघ को थोड़ा आराम मिली। फिर, बगुला ने जब बाघ से अपना पुरस्कार मांगा।

तो बाघ बहुत गुस्से से कहां, “मूर्ख! तूने बाघ के मुंह में अपनी चोंच डाल दी थी। और मैं तुझे अभी तक जिंदा रखा हूं। यही तेरा सबसे बड़ा पुरस्कार है।

यदि तुझे अपनी जान प्यारी लगे तो मेरे सामने से भाग जा। नहीं तो अभी तुझे मार कर मैं अपना भजन बनाऊंगा। मुझे अभी थोड़ा थोड़ा भूख भी लग रहा है।”

यह सुनकर बगुला चौंक गया और तुरंत अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गया। इसीलिए लोग कहते हैं कि, “शरारती के साथ सामाजिक संचार अच्छा नहीं है।”


9. एकता में बल Dadimaa ki Kahaniyan

एकता में बल - Dadimaa ki Kahaniyan
एकता में बल – Dadimaa ki Kahaniyan

एक समय की बात है, कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उड़ता हुआ जा रहा था। बहुत समय उड़ने के बाद, एक युवा कबूतर को नीचे हरियाली नजर आई।

युवा कबूतर ने बाकी सभी कबूतरों को कहा, “सुनो भाइयों, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पड़ा है। हम सब का पेट भर जाएगा। चलो हम सभी एक-एक दाना चुनकर खाते हैं।”

सभी कबूतर नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना, पक्षियों को पकड़ने के लिए फैलाया गया था। और ऊपर पेड़ पर जाल लगाया गया था।

जैसे ही कबूतर का दल दाना चलने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फस गए। फिर उनमें से एक कबूतर रोने लगा। “हम सब मर जाएंगे।” सभी कबूतर, हिम्मत हार बैठे थे।

पर युवा कबूतर सोच में डूबा था। उसने कहा, “जाल मजबूत ठीक है। अगर हम सभी एक साथ मिलकर उड़ने की कोशिश करें। तो हम जाल को साथ में लेकर आसानी से उड़ सकते हैं।”

सबने ऐसा ही किया। जाल साथ में लेकर सभी कबूतर एक साथ उड़ने लगा। तभी, जाल बिछाने वाला किसान कि नजर में आया। वह हाथ में डंडा लेकर कबूतरों को मारने के लिए दौड़ा।

सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उड़े, तो पूरा जाल हवा मे ऊपर उठा। सारे कबूतर जाल को लेकर उड़ने लगे। कबूतरों को जाल के साथ उड़ते देखकर किसान अवाक रह गया।

युवा कबूतर जानता था, कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल को साथ में लेकर उड़ना संभव नहीं होगा। पर युवा कबूतर के पास इसका उपाय था।

पास की पहाड़ी पर, उसका एक चूहा दोस्त रहता था। युवा ने, कबूतरों को पहाड़ी की ओर उड़ने का आदेश दिया। पहाड़ी पर पहुंचते ही, युवा कबूतर ने दोस्त चूहे को आवाज दी।

फिर, चूहा बिल में से बाहर आया। युवा कबूतर ने चूहे को सारी घटना बताई और जाल कटकर उन्हें आजाद करने के लिए कहा।

कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया और सभी कबूतरों को मुक्त किया। युवा कबूतर ने, अपना दोस्त चूहे को धन्यवाद दिया। फिर सभी कबूतर आकाश में आजादी की उड़ान भरने लगा।

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10. सुनी सुनाई बात Dadi Maa ki Kahani

सुनी सुनाई बात - Dadi Maa ki Kahani
सुनी सुनाई बात – Dadi Maa ki Kahani

बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में कई जानवर रहते थे। जंगल के बीच में एक बड़ा तालाब था। जहां से हर कोई जानवर पानी पीते थे। इस तालाब के बगल में, एक ताड़ का बहुत ऊंचा पेड़ था।

एक बार, कुछ खरगोश पानी पी कर तालाब के किनारे खेल रहे थे। एक पका हुआ बड़ा सा ताड़, टूटकर तालाब में गिर गया। जिससे बहुत जोर की आवाज आई, गडम करके।

गडम आवाज सुनकर खरगोश बहुत डर गए। और अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागने लगे। खरगोश को भागते हुए देखकर एक लोमड़ी ने पूछा, “क्यों भाग रहे हो खरगोश भाई?”

खरगोश ने कहा, “गडम आ रहा है हमें पकड़ने, भागो।” लोमड़ी भी उनके साथ भागने लगी। आगे चलकर उनको एक हाथियों का झुंड मिला। उनमें से एक हाथी ने पूछा, “क्यों भाग रहे हो लोमड़ी भाई?”

लोमड़ी ने उत्तर दिया, “गडम आ रहा है भागो।” हाथी भी उनके साथ भागने लगी। धीरे-धीरे गडम आ रहा है सुनकर, जंगल के बहुत सारे जानवर एक साथ भागने लगी।

यह जानवरों का झुंड, भागते भागते जब शेर के पास पहुंची। तो शेर ने पूछा, “क्यों भाग रहे हो?” उनमें से एक हाथी ने कहा, “गडम आ रहा है भागो, वह हमें मार देगा।”

फिर, शेर भागने के लिए तैयार हो रहा था। तो उसे एक दूसरे शेर ने कहा, “तुम क्यों भाग रहे हो? तुम तो इस जंगल के शक्तिशाली राजा हो। भागने से पहले सच्चाई तो जान लो।”

इस पर शेर ने एक हाथी से पूछा, “तुम्हें किसने कहा कि गडम आ रहा है?” उसने कहा, “मुझे तो लोमड़ी ने कहा।” फिर लोमड़ी ने कहा, “मुझे तो खरगोश ने कहा था।”

जब खरगोश से पूछा तो उसने कहा, “हम जहां पानी पी रहे थे, उस तालाब के किनारे गडम की आवाज आई थी। जिसे सुनकर हम सभी जान बचाने के लिए भाग रहे थे।”

तब शेर ने कहा, “मुझे उस स्थान पर ले चलो।” सभी जानवर उस स्थान की ओर चलने लगी। जैसे ही तालाब के किनारे पहुंचे, तो एक बड़ा सा ताड़ पेड़ से तालाब में गिर गया।

और बहुत जोर से गडम की आवाज आई। शेर ने कहा, “यह तो पानी का आज है, जो ताड़ गिरने से हुई।” सभी जानवर समझ गए, कि डरने की कोई बात नहीं। तब शेर ने कहा, “आगे से कभी सुनी सुनाई बात पर विश्वास नहीं करना।”

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11. हाथी का हिस्सा Dadimaa ki Kahaniya in Hindi

हाथी का हिस्सा - Dadimaa ki Kahaniya in Hindi
हाथी का हिस्सा – Dadimaa ki Kahaniya in Hindi

बहुत समय पहले की बात है, घनश्याम दास नाम का एक जमीदार था। उनके तीन लड़के थे। पैसा, नौकर, घोड़ा, गाड़ी तो थी ही। मगर घनस्यम को सबसे अधिक प्यार अपने 17 हाथियों से था।

वह इस बात को लेकर चिंतित थे, कि उसके मरने के बाद हाथियों का क्या होगा। समय ऐसे ही बीतता चला गया, और घनश्याम का अंतिम समय आ गया।

उसने अपने तीनों बेटे को बुलाया और कहां, “मेरा समय आ गया है। मेरे मरने के बाद सारी जायदाद आपस में बांट लेना। हमेशा एक बात का ख्याल रखना, मेरे हाथियों का कुछ नहीं होना चाहिए।”

कुछ दिन बाद घनश्याम मर गए। उसके तीनों बेटे ने उनका अंतिम संस्कार किया। फिर तीनों लड़के ने, पिता की इच्छा के अनुसार जायदाद को आपस में बांट लिया।

मगर हाथियों को लेकर सब परेशान हो गए। 17 हाथी को, इस तरह तीनों हिस्से में बांटना एकदम असंभव था। तीनों लड़के सोचने लगे, कि इस समस्या का कैसे समाधान किया जाए।

तभी तीनों ने देखा, एक साधु अपने हाथी पर सवार उनकी तरफ आ रहा है। साधु पास आने पर, लड़कों ने सारी कहानी सुनाई। साधु ने कहा, “अरे, इसमें परेशान होने की क्या बात है।

यह लो मैं तुम्हें अपना हाथी दे देता हूं।” यह सुनकर, तीनों लड़के बहुत खुश हुए। अब उनके सामने 18 हाथी खड़े थे। फिर साधु ने पहले लड़के को कहा।

“तुम सबसे बड़ा हो, इसलिए तुम 9 हाथी ले जाओ।” दूसरे लड़के को 6 हाथी दे दिए। छोटे लड़के को बुलाकर कहा, “तुम हिस्से के अनुसार दो हाथी ले जाओ।”

9, 6 और 2 मिलाकर 17 हाथी हो गए और एक हाथी फिर भी बच गया। लड़कों कि समझ में नहीं आया, तीनों साधु की ओर देखते रहे। उन सबको इस हालत में देखकर साधु मुस्कुराए।

फिर, साधु आशीर्वाद देकर तीनों लड़के से विदा ली। इधर यह तीनों लड़के सोच रहे थे, कि साधु अपना हाथी देखकर कितनी सरलता से एक जटिल समस्या का समाधान किया।


12. किसान और चिड़िया – Dadima ki Kahani

किसान और चिड़िया - Dadima ki Kahani
किसान और चिड़िया – Dadima ki Kahani

कुछ समय पहले की बात है, एक बहुत मेहनती किसान था। कड़ी धूप में उसने खेतों में काम किया और परिणाम स्वरूप बहुत अच्छी फसल हुई। फसल को देखकर किसान बहुत खुश थे।

क्योंकि, फसल काटने का समय आ गया था। इसी बीच खेतों में एक चिड़िया घर बना लिया था, उनके बच्चे अभी बहुत छोटे थे। एक दिन, किसान अपने बेटे के साथ खेत पर आया।

और कहां, “बेटा ऐसा करो, कि अपने सभी रिश्तेदारों को आमंत्रण करो। ताकि अगले शनिवार आकर फसल काटने में हमारी मदद करें।” यह सुनकर, चिड़िया के बच्चे बहुत घबरा गया।

और अपनी मां से कहने लगे, “अब हमारा क्या होगा? अभी तो हम पूरी तरह से उड़ने लायक नहीं हुए हैं।” मां चिड़िया ने कहा, “तुम सब चिंता मत करो। जो दूसरे के सहारे चलता है, उसकी कोई मदद नहीं करता।”

अगले शनिवार, जब बाप बेटे खेत पर पहुंचे। तो वहां कोई भी रिश्तेदार नहीं था। दोनों को बहुत निराशा हुई। फिर पिता ने बेटे से, सभी रिश्तेदारों को फिर से आमंत्रण करने के लिए कहा।

इस बार भी चिड़िया ने, अपने बच्चों के साथ बिना डर कर वहां खेतों में रहा। अगले हफ्ते जब दोनों बाप बेटे खेत पर पहुंचे। तो देखा कोई भी रिश्तेदार सहायता करने नहीं आया था।

तो किसान ने बेटे से कहा, “जो इंसान दूसरों का सहारा लेकर जीना चाहते हैं, उसका यही हाल होता है। उसे हमेशा निराशा ही मिलता है, अब चलो घर जाते हैं।

कल सुबह, हम फसल कटने का सामान लेकर आएंगे। और इस फसल को हम दोनों मिलकर काटेंगे।” चिड़िया ने जब यह सुना, तो उसने अपने बच्चों से कहने लगी,

“चलो, अब जाने का समय आ गया है। जब इंसान, खुद का काम खुद करने की प्रतिज्ञा कर लेता है। तो फिर उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती है।

और ना उसे कोई रोक सकता है।” इससे पहले कि बाप बेटे फसल काटने आए। चिड़िया, अपने बच्चों को लेकर एक सुरक्षित स्थान पर चले गए। फिर बाप बेटे दोनों मिलकर खुशी से फसल काटी।


13. शरारती बंदर – Dadimaa ki kahaniyan Hindi

शरारती बंदर - Dadimaa ki kahaniya Hindi
शरारती बंदर – Dadimaa ki kahaniyan Hindi

एक बार, शहर से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर का निर्माण किया जा रहा था। मंदिर में लकड़ी का बहुत काम था। इसीलिए, लकड़ी को चीरने के लिए बहुत से मजदूर काम पर लगे हुए थे।

यहां वहां बहुत सारे लकड़ी पड़े हुए थे और लकड़ी को चीरने का काम चल रहा था। सारे मजदूरों को खाना खाने के लिए शहर जाना पड़ता था। शहर वहां से थोड़ा दूर था।

इसीलिए, दोपहर का समय वहां कोई नहीं होता था। एक दिन, खाने का समय हुआ तो सारे मजदूर काम छोड़ कर शहर की ओर चल दिए। वहां एक लकड़ी आधा चिरा रह गया था।

तभी वहां बंदरों का झुंड उछलता कूदता हुआ आया। उस झुंड में एक शरारती बंदर थी। जो बिना मतलब के हर चीजों को छेड़छाड़ करता रहता था।

फिर बंदरों के कप्तान ने, सबको वहां पड़ी चीजों को छेड़छाड़ ना करने का आदेश दिया। सारे बंदर कप्तान के साथ पेड़ों की ओर चल दिए। लेकिन, शरारती बंदर सबकी नजर बचाकर पीछे रह गया।

फिर उसका नजर आधा चिरा लकड़ी पर पड़ी। उसने बीच में अडाए लकड़ी को देखने लगा। तभी उसने देखा कि पास में एक आरी पड़ी है। उसे उठाकर लकड़ी पर घिसने लगा।

उससे थोड़ी आवाज निकालने लगी, तो बंदर गुस्से से आरी पटक दी। फिर उसने लकड़ी के बीच में फंसे एक कीले को देखने लगा।

उसके दिमाग में कोतुहल जगी, कि इस कीले को लकड़ी के बीच में से निकाल दिया जाए तो क्या होगा? अब वह कील को पकड़कर बाहर निकालने के लिए कोशिश करने लगा।

लकड़ी के बीच फंसा हुआ कीला, तो बहुत मजबूती से अटक गया था। बंदर खूब जोर लगाकर उसे हिलाने की कोशिश करने लगा। जोर लगाने पर कीला हिलने लगा, बंदर खुश हो गया।

वह, और जोर से कीला खींचने लगा। इस बीच बंदर की पूँछ दो पाटों के बीच आ गई थी। जिसका उसे पता नहीं था। फिर उसने उत्तेजित होकर एक जोर से झटका मारा, जैसे ही कीला बाहर खींचा।

लकड़ी के दो चीरे फटाक से जुड़ गए और बीच में फंस गई बंदर की पूँछ। बंदर, दर्द के मारे जोर से चिल्लाया। तभी मजदूर खाना खाकर वहां वापस लौटे।

उन्हें देखते ही बंदर भागने के लिए अपनी पूँछ जोर से खींचा। तो उसकी आधा पूँछ टूट गई। वह अपनी जान बचाने के लिए चीखता हुआ टूटी पूँछ ले कर वहां से भागा।


14. चालाक बिल्ली Dadi ki Kahaniyan

बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ की शाखा पर एक कौवा और एक चिड़िया दोनों अपने अपने घोंसले में रहते थे।

एक दिन चिड़िया ने कौवा को कहा, “पास की एक खेतों में बहुत सारे फसल पक कर तैयार हुए हैं। मैं उसे खाने के लिए जा रही हूं, वापस आने तक तुम मेरे घर का ख्याल रखना।”

कौवा ने कहा, “ठीक है दोस्त।” फिर चिड़िया फसल खाने के लिए वहां से उड़ गई। शाम को कौवा चिड़िया का इंतजार कर रहा था, पर चिड़िया नहीं आई।

धीरे धीरे कई दिन बीत गई, चिड़िया नहीं आया। कौवा ने सोचा, हो सकता है उसे किसान ने मार दिया होगा। अब कौवा को चिड़िया वापस आने का कोई उम्मीद नहीं थी।

एक दिन, एक खरगोश उस पेड़ के पास से गुजर रही थी। उसकी नजर उस चिड़िया की खाली पड़े घोसले में पड़ी। खरगोश अंदर जाकर देखा वहां कोई नहीं था।

खरगोश को चिड़िया की यह घर पसंद आ गया और वह उसी घर में रहने लगा। कौवा ने भी खरगोश को मना नहीं किया।

कुछ दिन बीत जाने पर जब फसल खत्म हो गई, तो चिड़िया वापस अपने घोंसले में आई। यहां आकर उसने देखा कि, उसके घर में एक खरगोश रह रहा है।

चिड़िया ने खरगोश को कहा, “यह घर तो मेरा है। तुम क्यों मेरे घोंसले में रह रहे हो।” खरगोश ने कहा, “मैं कई दिनों से यहां रह रही हूं, इसलिए यह घर मेरा है।” लेकिन, चिड़िया नहीं मानी।

खरगोश भी नहीं मानी। वह दोनों एक दूसरे से झगड़ रहे थे। आखिर में खरगोश ने कहा, “हमें किसी बुद्धिमान के पास जाकर अपना फैसला करवाना चाहिए।”

फैसला जिसकी तरफ होगा वह यहां रहेगा और दूसरा यहां से चला जाएगा। इस बात को चिड़िया भी मान गई। इनकी बीच लड़ाई को पास में रहती एक बिल्ली ने सुन लिया था।

खरगोश और चिड़िया को देखकर, दिल्ली जोर-जोर से राम राम कहने लगी। फिर खरगोश की नजर उस बिल्ली पर पड़ी।

खरगोश ने कहा, “देखो, यह बिल्ली राम-राम कह रही है। हमें उस बिल्ली से फैसला करवा लेना चाहिए।” चिड़िया ने कहा, “यह हमारा एक पुरानी दुश्मन है, इसलिए उनसे दूर से बात करना चाहिए।”

फिर चिड़िया ने दूर से कहा, “महाराज आपको हमारा एक फैसला करना है।” बिल्ली ने कान पर हाथ रखे कहां, “क्या हमें सुनाई नहीं दिया, जरा नजदीक आकर जोर से बोलो।”

चिड़िया ने जोर-जोर से कहा, “महाराज हमारा एक फैसला करना है, जिस की जीत होगी उसे छोड़कर दूसरे को तुम खा लेना।”

बिल्ली ने कहा, “छी, छी तुम यह कैसी बातें कर रहे हो। मे तो शिकार करना कब का छोड़ दिया। तुम दोनों नजदीक आकर मुझे सब बताओ, मैं तुम्हारा फैसला कर दूंगी।”

खरगोश को उसकी बात पर भरोसा हो गया। वह बिल्ली के नजदीक गया। बिल्ली ने कहा, “और नजदीक आओ, मेरे कान पर बताओ हमें थोड़ा कम सुनाई देती है।”

खरगोश उसके कान में सारी बात बता दी। चिड़िया भी यह देखकर दिल्ली के पास पहुंच गई। मौका देखते ही बिल्ली ने झटका मारकर दोनों को मार दिया और खा गई।

पेट भर जाने के बाद, बिल्ली खुद चिड़िया की घोंसले में जाकर सो गई। इसीलिए कहते हैं, कभी भी अपने दुश्मन पर भरोसा नहीं करना चाहिए।


15. घमंडी का सर नीचा Dadimaa ki kahaniya

बहुत समय पहले की बात है, एक बार एक ऋषि एक गांव में गए। गांव के अंदर एक बड़ा पेड़ के नीचे रहने लगे और भगवान से आशीर्वाद पाने के लिए, पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगे।

धीरे-धीरे गांव वाले उनके पास आने लगे, अपने समस्याओं का समाधान पूछने के लिए। कुछ ही समय में साधु बाबा प्रसिद्ध हो गए और पूरे गांव में उनके नाम फैल गई।

उसी गांव में एक मुखिया भी रहता था, जो बहुत घमंडी था। वह ऋषि बाबा से ईर्ष्या करता था और कहता था, वह एक झूठे साधु है।

उसने कहा, अगर बाबा एक सच्चे और ईमानदार साधु है तो एक शेर को बुलाकर दिखाएं। जब गांव के लोग ने बाबा को यह बात बताई।

तो ऋषि बाबा ने कहा, “ठीक है, अगर उसकी यही इच्छा है तो मैं उसे अपनी भगवान जी से कहकर शेर के साथ उनका दर्शन करा दूंगा।”

अगले दिन सुबह ऋषि बाबा जंगल में जाकर ध्यान करने लगे। अपने सच्चे दिल से भगवान को पुकारने लगे। “दर्शन दो प्रभु, दर्शन दो।”

फिर, वहां एक दौड़ता हुआ शेर प्रकट हुआ और बाबा जी के सामने आ गया। बाबा जी ने उसे अपने कपड़ों से बांध लिया और कहां, “मेरे साथ चलो प्रभु।”

शेर बाबा के साथ ऐसे चल रहा था, जैसे कि वह एक बाबा का पालतू कुत्ता है। कुछ ही समय में, बाबा शेर को लेकर गांव में प्रवेश किया।

ऋषि बाबा के साथ शेर को देखकर, गांव में सब डर गए थे। जैसे ही बाबा शेर को साथ लेकर गांव कि मुखिया के घर के सामने आए। तो मुखिया डर के मारे दरवाजा बंद किया और अंदर छुप गया।

ऋषि बाबा ने कहा, “दरवाजा तो बंद कर लिया। लेकिन, ऐसे में तो आप शेर का दर्शन ही करना भूल गए।” फिर, शेर ने एक पंजा मारा और दरवाजा खोल दिया।

बाबा जी शेर के साथ घर के अंदर चले गए और बोले, “महाराज, आप तो शेर से मिलना चाहते थे। इसीलिए मैं शेर को आपके घर ले आया हूं, लो देख लो।”

यह देखकर, मुखिया जी डर के मारे जोर जोर से रोने लगा। और बाबा जी के चरणों में गिर कर माफी मांगने लगा। अब मुखिया अपना सर झुका कर शेर के आगे खड़ा था।

इतने में ऋषि बाबा और शेर वहां से दोनों ही गायब हो गए। मुखिया का सर नीचा ही रह गया। इसीलिए कहते हैं, कि घमंडी का सर हमेशा नीचा ही रहता है।


16. राजा और चोर Dadimaa ki kahaniyan in Hindi

बहुत पहले की बात है, उस जमाने में एक चोर था। वह बड़ा ही चतुर था। लोगों का कहना था कि, वह आदमी की आंखों का काजल तक उठा सकता है।

एक दिन, चोर चोरी करने के लिए राजधानी की ओर रवाना हुआ। वहां पहुंचकर चोर यह देखने के लिए नगर का चक्कर लगाया, कि कहां चोरी कर सकता है।

फिर, उसने तय किया कि राजा के महल से अपना काम शुरू करेगा। राजा महल के रखवाली के लिए बहुत सारे सिपाही तैयार कर रखे थे। बिना पकड़े गए परिंदा भी महल में नहीं घुस सकता था।

महल में एक बहुत बड़ी घड़ी लगी थी। जो दिन रात का समय बताने के लिए जोर-जोर से घंटे बजाती थी। चोर ने लोहे की कुछ कीलें इकट्ठा कर रखी थी।

और जब रात को घड़ी में 12:00 बजा। तो घंटे की हर आवाज मे, वह महल की दीवार पर एक एक कील ठोकता गया। इस तरह बिना शोर किए, महल की दीवार पर उसने 12 कीलें लगा दी।

फिर, उन्हें पकड़कर चोर ऊपर चढ़ गया और महल में घुस गया। इसके बाद चोर खजाने के पास गया और वहां से बहुत सी हीरा चुरा लाया।

अगले दिन जब मंत्रियों ने राजा को चोरी के बारे में बताया, तो राजा बड़ा हैरान और नाराज हुआ। उसने मंत्रियों को आज्ञा दी, शहर की सड़कों पर सिपाहियों की संख्या दुगनी कर दो।

अगर रात के समय सड़क पर किसी को भी घूमते हुए पाया, तो उसे चोर समझकर तुरंत पकड़ लो। जिस समय राजा मंत्रियों को यह आदेश दे रहा था, एक नागरिक के रूप में चोर वहां मौजूद था।

उसे सारी योजना के बारे में पता चल गया था। उसे यह भी पता चल गया था कि, कौन कौन सिपाही रात को शहर में चोर को पकड़ने के लिए जाएगी।

वह तुरंत वहां से जाकर एक साधु के रूप लिया। और उन सिपाहियों की बीवियों से जाकर मिला। उनमें से हरेक इस बात को लेकर उत्सुक थी कि, उनकी पति ही चोर को पकडे और राजा से इनाम ले।

एक-एक करके चोर उन सब के पास गया। और उनकी हाथ देखकर बताया, “उनके पति की पोशाक में चोर उनके घर आएगा। लेकिन, देखो चोर को घर के अंदर मत आने देना।

घर के सारे दरवाजे बंद कर लेना। भले ही वह पति की आवाज में बोलता होगा। उसके ऊपर जलता कोयला फेंकना और उसे पकड़ लेना।” सभी बीवियों ने रात को चोर आने के लिए तैयार हो गया।

सभी सिपाहियों ने 4:00 बजे तक पहरा देते रहे। हालांकि अभी अंधेरा था, लेकिन उन्हें इधर-उधर कोई भी दिखाई नहीं दिया। फिर उन्होंने सोचा कि, उस रात को चोर नहीं आएगा। यह सोचकर उन्होंने अपने घर जाने का फैसला किया।

जल्द ही बे घर पहुंचे। बीवियों को शक हुआ और उन्होंने चोर की बताई करवाई शुरू कर दी। फल यह हुआ, सिपाही जल गए। बड़ी मुश्किल से अपनी बीवियों को विश्वास दिला पाए, कि बे उनके असली पति है।

सारे पतियों के जल जाने के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया। अगले दिन दरबार में राजा को सारा किस्सा सुनाया गया। राजा इतना हैरान हुआ, कि उसने उस रात चोर की निगरानी खुद करने का निर्णय लिया।

उस समय चोर दरबार पर मौजूद था और सारी बातें सुन रहा था। रात होने पर चोर साधु का भेष बनाया और नगर के सिरे पर एक पेड़ के नीचे धूनी जलाकर बैठ गया।

राजा ने पहरा देना शुरू की और दो बार साधु के सामने से गुजरे। तीसरी बार जब बह उधर आया, तो उसने साधु से पूछा, “क्या इधर से किसी अजनबी आदमी को आपने जाते देखा?”

साधु ने जवाब दिया, “हम तो अपने ध्यान में लगा था। अगर उसके पास से कोई निकला भी होगा तो उसे पता नहीं। यदि आप चाहे तो मेरे पास बैठ जाइए और देखते रहिए कि कोई आता जाता है या नहीं।”

यह सुनकर राजा के दिमाग में एक योजना आई। कि साधु उसकी कपड़े पहनकर शहर का चक्कर लगाए। राजा साधु के कपड़े पहन कर वहां चोर की तलाश में बैठे।

उन्होंने आपस में कपड़े बदल लिए। साधु राजा के कपड़े पहन कर घोड़े पर सवार होकर महल में पहुंचा। और राजा की सोने के कमरे में जाकर आराम से सो गया।

बेचारा राजा साधु बनकर चोर को पकड़ने के लिए, उनका इंतजार करता रहा। राजा ने देखा, ना तो साधु लौटा और ना तो उस रास्ते से कोई भी गुजरा। तो उसने महल में लौट जाने का फैसला किया।

लेकिन जब वह महल के बाहर पहुंचा। तो सिपाहियों ने सोचा, राजा तो पहले ही आ चुका है। हो ना हो यह चोर है, जो राजा बनकर महल में घुसना चाहता है। उन्होंने राजा को पकड़ लिया और काल काठरी में बंद कर दिया।

राजा बहुत शोर मचाया, पर किसी ने भी उनकी बात नहीं सुनी। दिन का उजाला होने पर, काल काठरी में पहरा देने वाले सिपाही राजा को पहचान लिया। और वह राजा के पैर पर गिर पड़ा।

फिर, राजा ने सारे सिपाहियों को बुलाया और महल में गया। उधर चोर जो रात भर राजा बनकर महल में सोया था। सुबह होते ही राजा के घोड़े पर बैठकर रफूचक्कर हो गया।

अगले दिन, जब राजा अपने दरबार में पहुंचा तो बहुत ही नाराज था। उसने ऐलान किया, अगर चोर अपने आप आत्मसमर्पण करेगा तो उसे माफ कर दिया जाएगा और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

बल्कि उसकी चतुराई के लिए, उसे इनाम भी मिलेगा। चोर दरबार में मौजूद था। तुरंत वो राजा के सामने आ गया और कहां, “महाराज, में ही बह अपराधी हूं।”

इसके सबूत में, उसने कल रात राजा की महल से जो कुछ भी चुराया था वह सबके सामने रख दिया। साथ ही राजा के कपड़े और उसके घोड़ा भी।

राजा ने, उसकी चतुराई के लिए उसे इनाम दिया। और उनसे वादा कराया कि बह आगे चोरी करना छोड़ देगा। इसके बाद से चोर उसी राज्यों में खूब आनंद से रहने लगा।


17. ढोल की आवाज Dadima ki kahaniya in hindi

एक बार एक जंगल के नजदीक दो राजाओं के बीच घोर युद्ध हुआ। एक जीता और दूसरा हार गया। सेनाओं ने अपनी राज्यों में लौट गई, बस सेना का एक ढोल पीछे रह गया।

युद्ध के बाद, एक दिन मौसम खराब हुआ बारिश के साथ जोर हवा चलने लगी। जोर हवा के कारण, वह ढोल एक बड़ी पेड़ के पास जाकर अटक गया।

उस पेड़ की शाखाओं के पास टोल इस तरह से अटक गई थी, कि तेज हवा चलते ही पेड़ की शाखा टोल पर टकरा जाती थी और दमादम, दमादम की आवाज होती थी।

एक दिन एक लोमड़ी वहां से जा रहा था, उसने ढोल की आवाज सुनी। वह बहुत डर गया, ऐसी अजीब आवाज लोमड़ी ने पहले कभी नहीं सुना था।

उसने सोचने लगा, “यह कैसा जानवर है? जो ऐसी जोरदार आवाज करता है।” लोमड़ी छुपकर ढोल को देखता रहा। यह जानने के लिए, कि उसके अंदर कौन सा जानवर है।

एक दिन लोमड़ी झाड़ी के पीछे छुप कर, उस ढोल को देख रहा था। तभी एक गिलहरी पेड़ के ऊपर से कूदकर उस ढोल पर उतरी। हल्की सी आवाज हुई।

गिलहरी ढोल के ऊपर बैठकर कुछ खा रही थी। लोमड़ी ने सोचा, “यह तो कोई जानवर नहीं है। मैं तो फालतू में डर रहा था, मुझे इस से नहीं डरना चाहिए।”

लोमड़ी धीरे-धीरे उस ढोल के करीब गया। वह ढोल को नजदीक से देख रहा था, तभी हवा के झोंके से पेड़ की शाखा ढोल से टकराई और दमादम की आवाज हुई।

लोमड़ी डरकर पीछे आ गई और बोला, “अब समझ में आया, यह तो बाहर का खोल है। जानवर इस खोल के अंदर है। आवाज बता रही है कि, जो कोई भी जानवर इस खोल के अंदर है, वह बहुत मोटा और ताजा होगा।”

फिर लोमड़ी एक दूसरा लोमड़ी के पास गया और कहा, “आओ भाई, दावत खाने के लिए हमारे साथ आओ। मैं एक मोटे-ताजे शिकार का पता लगा कर आया हूं।”

दूसरा लोमड़ी ने पूछा, “तुम उसे मारकर क्यों नहीं लाए?” उस लोमड़ी ने उत्तर दिया, “क्योंकि, मैं तुम्हारी तरह मुर्ख नहीं हूं। वह एक खोल के अंदर छुपा बैठा है।”

फिर दोनों लोमड़ी एक साथ मिलकर उस ढोल के निकट गए। जब वह ढोल के पास पहुंच रहे थे, फिर हवा से पेड़ की शाखा उस ढोल पर टकराई और दमादम की आवाज निकली।

लोमड़ी दूसरे लोमड़ी के कान में बोला, “तुमने सुनी उसकी आवाज? जरा सोचो, उसकी आवाज इतनी गहरी है। वह खुद कितना मोटा और ताजा होगा।”

फिर दोनों लोमड़ी मिलकर ढोल को सीधा किया और उसकी दोनों तरफ बैठ गया। दोनों ने टोल के दोनों चमड़े वाले भाग को काटने लगे।

लोमड़ी ने कहा, “जरा होशियार रहना, हमें एक साथ ढोल के भीतर हाथ डालकर शिकार को पकड़ना है।”

दोनों लोमड़ी एक साथ ढोल के अंदर हाथ डाले और ढूंढने लगा, अंदर कुछ नहीं था। एक दूसरे के हाथ पकड़ में आए। फिर दोनों चिल्लाया, “यहां तो कोई नहीं है।”


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तो दोस्तों हम आशा करते हैं, कि आपको 17 Best Dadimaa ki Kahaniyan in Hindi पढ़कर जरूर अच्छी लगी होगी और कृपया करके इन  कहानियाँ को आप अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर जरूर करें।

ताकि, हर कोई इन मजेदार शिक्षावर्धक कहानियों को पढ़ सके। हमारे आज के विषय Dadimaa ki kahani तो पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।

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